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Contents
Sri Dev Suman Biography
श्री देव सुमन, जिनका असली नाम श्री दत्त बडोनी था, का जन्म 25 मई 1916 को उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले के जौल गांव में हुआ था। उनके पिता डॉ. हरि राम बडोनी एक आयुर्वेदिक डॉक्टर थे और उनकी मां तारा देवी एक गृहिणी थीं। दुख की बात है कि सुमन के तीन साल के होने तक उनके पिता का निधन हो गया और परिवार की जिम्मेदारी उनकी मां पर आ गई।
Personal Life
1938 में, सुमन ने विनय लक्ष्मी से शादी की। बाद में, विनय लक्ष्मी 1957 और 1962 में देवप्रयाग क्षेत्र से विधान सभा के सदस्य बने।
Activism and Freedom Struggle
श्री देव सुमन महात्मा गांधी से बहुत प्रभावित थे और उन्होंने स्वतंत्रता के लिए अहिंसात्मक तरीके अपनाए। वे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख नेता थे, खासकर देहरादून क्षेत्र की स्वतंत्रता के लिए। 1939 में, उन्होंने ‘देहरादून राज्य प्रजा मंडल’ की स्थापना की और उत्तराखंड में एक प्रमुख युवा नेता बन गए।
सुमन को अपनी सक्रियता के लिए कई बार गिरफ्तार किया गया, जिसमें सिविल नाफरमानी आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान भी शामिल था। उन्हें देहरादून, देहरादून और आगरा की जेलों में कैद किया गया।
Imprisonment and Martyrdom
1943 में, आगरा जेल से छूटने के बाद, सुमन ने अपने काम को फिर से शुरू किया। 30 दिसंबर 1943 को, उन्हें विद्रोही घोषित कर दिया गया और तेहरी राज्य द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया। 3 मई 1944 को, सुमन ने जेल अधिकारियों के बुरे व्यवहार और अपनी मांगों को न मानने के विरोध में अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल शुरू की। 209 दिन जेल में और 84 दिन भूख हड़ताल पर रहने के बाद, सुमन का 25 जुलाई 1944 को 29 साल की उम्र में निधन हो गया।
उनके शरीर को भिलंगना नदी में बहा दिया गया। सुमन की शहादत ने बहुत से लोगों को स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए प्रेरित किया, और उनका जन्मदिन उत्तराखंड में सुमन बलिदान दिवस के रूप में मनाया जाता है।
Legacy
श्री देव सुमन उत्तराखंड में बहुत सम्मानित व्यक्ति हैं। उनकी स्वतंत्रता संग्राम में की गई मदद को हर साल याद किया जाता है। 2012 में, उत्तराखंड सरकार ने पंडित दीन दयाल उपाध्याय उत्तराखंड विश्वविद्यालय का नाम बदलकर श्री देव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय रख दिया, ताकि उनकी सम्मान में किया जा सके।
Conclusion
श्री देव सुमन की ज़िंदगी और उनकी कुर्बानियाँ उनके अहिंसा और स्वतंत्रता के सिद्धांतों के प्रति अडिग प्रतिबद्धता का प्रमाण हैं। उनका प्रभाव आज भी उत्तराखंड और उसके बाहर की पीढ़ियों को प्रेरित करता है।
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