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Contents
Lakshmi Bai Biography in Hindi
रानी लक्ष्मीबाई, जिनका असली नाम मणिकर्णिका तम्बे था, 19 नवंबर 1828 (कुछ स्रोतों के अनुसार 1835) को वाराणसी (तब बनारस) में एक मराठी करहाड़े ब्राह्मण परिवार में जन्मी थीं। उनके माता-पिता मोरपंत तम्बे और भागीरथी सपरे थे। बचपन में उन्हें उनकी चंचल और खुशमिजाज स्वभाव के कारण “चाबिली” के नाम से बुलाया जाता था।
Marriage and Ascension to the Throne
14 साल की उम्र में, माणिकर्णिका की शादी 1842 में झाँसी के महाराजा गंगाधर राव न्यूवलकर से हो गई, जिसके बाद उनका नाम लक्ष्मी बाई रखा गया। इस दंपति का एक बेटा था जिसका नाम दमोधर राव था, लेकिन वह चार महीने के बाद ही निधन हो गया। इस दुख के बाद, महाराजा ने अपने चचेरे भाई के बेटे आनंद राव को गोद लिया और उसका नाम दमोधर राव रख दिया। 1853 में महाराजा गंगाधर राव का निधन हो गया, जिससे रानी लक्ष्मी बाई को ब्रिटिशों की उस नीति का सामना करना पड़ा, जिसे ‘डॉक्ट्रीन ऑफ लैप्स’ कहा जाता था। यह नीति उनके गोद लिए हुए बेटे को असली वारिस के रूप में मान्यता नहीं देती थी।
Role in the Indian Rebellion of 1857
रानी लक्ष्मीबाई 1857 की भारतीय विद्रोह की प्रमुख शख्सियत बन गईं। जब विद्रोह 10 मई 1857 को मेरठ में शुरू हुआ, तो यह जल्दी ही झाँसी तक पहुँच गया। रानी ने मोर्चा संभाला, अपने सैनिकों को संगठित किया और झाँसी को ब्रिटिश सेनाओं के खिलाफ मजबूत किया। उन्हें झाँसी की रानी घोषित किया गया और वे झाँसी की रानी के नाम से मशहूर हो गईं।
Defense of Jhansi
साल 1858 की शुरुआत में, ब्रिटिश सेना जनरल ह्यूग रोज की अगुआई में झांसी पर हमला कर दी। बहादुरी से लड़ा जाने के बावजूद, मार्च 1858 में किला ब्रिटिशों के हाथ लग गया। रानी लक्ष्मी बाई ने बचकर निकलने में कामयाबी पाई और अन्य विद्रोहियों, जैसे तांतिया टोपे, के साथ मिलकर ग्वालियर के किले को अपने कब्जे में ले लिया। उन्होंने नाना साहेब को एक नए मराठा साम्राज्य का पेशवा घोषित किया।
Final Battle and Death
रानी लक्ष्मी बाई की आखिरी लड़ाई ग्वालियर में हुई थी। पुरुष की तरह कपड़े पहनकर, उन्होंने बहुत बहादुरी से लड़ा, लेकिन 18 जून, 1858 को लड़ाई में उनकी मौत हो गई। विद्रोह के दौरान उनकी बहादुरी और नेतृत्व ने उन्हें ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक प्रतीक बना दिया।
Legacy
रानी लक्ष्मी बाई को एक राष्ट्रीय हीरो और साहस, वीरता, और महिला शक्ति की प्रतीक के रूप में याद किया जाता है। उनके जीवन और बलिदान ने बहुत सारी किताबों और कविताओं को प्रेरित किया है, जैसे कि प्रसिद्ध हिंदी कविता “झांसी की रानी” जो सुभद्राकुमारी चौहान ने लिखी थी। भारतीय राष्ट्रीय सेना में महिलाओं की एक बटालियन, जो रानी की झांसी बटालियन के नाम से जानी जाती है, को उनके सम्मान में बनाया गया था और यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं की भागीदारी का एक महत्वपूर्ण प्रतीक है।
Conclusion
रानी लक्ष्मीबाई की कहानी आज भी लोगों को प्रेरित करती है। उनकी ज़िन्दगी उनकी ताकत, बहादुरी और अपने लोगों और देश के प्रति उनकी निष्ठा को दिखाती है। वह हमेशा भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई और महिलाओं की ताकत की प्रतीक रहेंगी।
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